Friday 7 January 2022

मेरे घर पर हमला हुआ लेकिन मैं सुरक्षित हूँ-पं ब्रह्मदेव वेदालंकार

मित्रो,

5 जनवरी 2022  को राज नगर एक्टेंशन स्थित मेरे हिमालय तनिष्क अपार्टमेंट पर ३ लोगो द्वारा हमला किया गया। हाथ में हथोड़ा,सरिया,आरी इत्यादि लिए हुए आये ये ३ लोगो की मंशा मुझे एवं मेरे परिवार को नुक्सान पहुंचने की एवं घर में तोड़फोड़ की प्रतीत होती है। ये ३ लोग वही है जिन्होंने साजिश के द्वारा मेरे छोटे भाई प्रेम नारायण की पिछले साल मार्च में हत्या कर दी थी। पिछले लगभग एक साल से मैं न्याय की लड़ाई लड़ रहा हूँ एवं इसमें मुझे बहुत सारे लोगो का साथ भी मिला और लेकिन  लोगो का असली चेहरा भी सामने आ गया।

Dainik Jagran :How flat was attacked
 by Alka and his family 


आज थोड़ा दुखी हूँ लेकिन निराश नहीं हूँ , भयभीत नहीं हूँ इसलिए आप सबको यह बताना चाहूंगा की किस प्रकार से विभिन्न माध्यमों द्वारा मेरी इस न्याय की लड़ाई में अड़चन पैदा की जा रही है। 

Alka and his father damaging CCTV camera before attacking house

                                                                  

मित्रो, 12 मार्च 2021 को सुबह 8  बजे मुझे एक UNKNOWN नंबर से कॉल आता है की वह प्रेम नारायण जी आर्य समाज का सेवक बोल रहा है और कहता है - "क्या आप प्रेम जी के बड़े भाई बोल रहे है " मैंने उत्तर दिया " है,बोल रहा हूँ ,बताईये " तब उस व्यक्ति ने मुझे बताया की "मैंने पंडित जी को कॉल किया लेकिन उन्होंने उठाया नहीं ,उसी नंबर से कुछ देर में कॉल आया और एक औरत जो की शायद उनकी पत्नी है बोली की पंडित जी ने आत्महत्या कर ली है और इसके जिम्मेदार तुम हो ,तुमने कराया है "। यह बात कहते हुए वो सेवक ने कहा की आप कृपया देखिये क्या हुआ है ,हमे डर लग रहा है।  मैं तुरंत राज नगर एक्सटेंशन स्थित अपने फ्लैट पंहुचा जहाँ प्रेम नारायण का निवास था तो देखा की प्रेम नारायण का शव BED पर है और उसकी पत्नी कह रही है की इन्होने आत्महत्या कर ली है। पुलिस वहां पहुंच चुकी थी। फिर प्रेम नारायण की पत्नी (अलका ) बोली की "मैंने इन्हे ६ बजे देखा तो ये सो रहे थे और ६ ३० देखा तो ये लटके हुए थे। फिर मैंने इन्हे पंखे से उतरा और बेड पर लिटा दिया "। ताज्जुब की बात ये थी की एक 95 kg के व्यक्ति को ACCUSED अलका ने अकेले कैसे उतार लिया ,न सोसाइटी के गार्ड को बुलाया और न ही पडोसी को ,न शोर मचाया। यहाँ तक की ये हो जाने के बाद मुझे भी जानकारी नहीं दी जबकि मैं महज 7 -8 km  की दूरी पर रहता हूँ।  यहाँ तक की अलका के घर वाले भी जो की फरीदाबाद रहते थे जिसका रास्ता एक ढ़ेर घंटे का है वो ७ घंटे बाद अर्थात 1 बजे दोपहर को वहां पहुंचे।  मेरे भाई का पोस्टमॉर्टेम तक नहीं हुआ और अलका के घर वाले वापिस घर भी चले गए। 

इसके अतिरिक्त मुझे यह अच्छे से जानकारी थी की अलका और मेरे भाई प्रेम नारायण का झगड़ा होता था। अलका एवं उसके परिवार वाले चाहते  थे की प्रेम नारायण अपने बड़े भाई भाभी से नाता तोड़ दे , फ्लैट बेच दे और जो पैसा मिले उसे FD करा दे और किराये पर फरीदाबाद रहे जिसके लिए मेरा भाई राजी नहीं था। यह बात वो हजार बार बता चूका था और हम सबका यही प्रयास था की चाहे कानूनन या आपसी सहमति से सुलह हो जाये और जीवन सुखी हो जाय।   किन्तु मेरे भाई के प्राण चले गए

ये सब सोच कर मैं शाम को उसी दिन (12 मार्च) को पुलिस स्टेशन गया और अलका एवं उसके परिवार के खिलाफ कंप्लेंट दी। पुलिस ने कंप्लेंट ली लेकिन कोई FIR नहीं करी। जब ३ दिन मैं पुलिस स्टेशन के चक्कर काटता रहा तब FIR हुई वो भी मर्डर की नहीं आत्महत्या की। 

जब मैंने सबूत दिए ,गवाहों ने गवाही दी तब जाकर अलका को 31 मार्च को गिरफ्तार किया गया।  लेकिन ये गिरफ्तारी इतनी आसान नहीं थी 

मित्रो ,प्रेम नारायण के जाने के बाद जब मैंने अलका के घर वालो को फ़ोन किया की वो अलका को भेज दें जिससे यज्ञ आदि रस्मे की जा सके तब उसके घर वाले बोले की हम लोगो को आपसे कोई मतलब नहीं रखना और हम किसी भी कार्यक्रम में नहीं आएंगे।  लेकिन ३१ मार्च को ये सब लोग उस मेरे फ्लैट में आये जहाँ प्रेम नारायण रहता था ,बिना मुझे बताये। घर में गृह प्रवेश की पूजा करी और उस घर पर कब्जा स्थापित करने का प्रयास किया ,लेकिन ईश्वर की कृपा थी की सूचना पुलिस को मिल गयी और ये लोग गिरफ्तार हो गए,। 

जिला अदालत में जमानत अलका की ख़ारिज हो गयी ,और ६ महीने बाद माननीय हाई कोर्ट के द्वारा अक्टूबर में अलका को जमानत मिली। लेकिन नवंबर,दिसंबर में न आकर जनवरी में अलका और उसके भाई भारत शर्मा और मिट्ठन लाल शर्मा ने मुझे पर एवं परिवार पर हमला किया। लेकिन मैं फ्लैट में उस दिन उपस्थित नहीं था ,परिवार के साथ आश्रम गया हुआ था ,इसलिए मुझे क्षती तो नहीं हुई लेकिन मेरे घर के दरवाजे तोड़कर ,मुझे हानि पहुंचाई गयी। लेकिन इनका मुझे डरने का प्रयास सफल होने वाला नहीं है। 

 जैसा मैंने कहा की मैं दुखी हूँ ,तो मैं क्यों दुखी हूँ आपको बताता हूँ :-

1 मैं एक किसान परिवार से आता हूँ , पिता जी के निर्देश अनुसार एवं मेरे दादा जी स्वामी सत्यानंद जी के आशीर्वाद से मैंने एक एक भाई को गांव से लेकर आया ,गुरुकुल आदि माध्यम से सब भाइयो को पढ़ाया जो की मेरा धर्म है। प्रेम नारायण को भी गुरुकुल कांगरी के माध्यम से पढाई कराई एवं वह अपनी मेहनत से  योग्य हुआ। आज इतनी बातें लोग कहते है, तो क्या भाई को पढ़ाना गलत था ?

२ शादी गलत जगह हो जाने से क्या भाई को छोड़ दिया जाता है ? जिसको अपने बच्चे की तरह रखा उसे हम भूल जाएं 

३ क्या मेरे छोटे भाई की बेटी जो अभी अलका एवं उसके परिवार के कब्जे में है उसको सुरक्षित भविष्य देने की मेरी सोच गलत है ? लोग कहते है आप उसे न लें , तो क्या वो बच्ची इन हत्यारो के हाथ safe है ?उसे अपने हाल पर छोड़ दें ,यही धर्म है ???

4  क्या मेरा न्याय के लिए लड़ना व्यर्थ है ? बेवकूफी है ? कुछ लोग कहते है की भाई वापिस नहीं आएगा ,केस वापिस ले लीजिये, क्या मुझे सही में केस वापिस ले लेना चाहिए ?

5  पुलिस को जिस घर में जाकर जांच करनी चाहिए थी वहां वो एक बार भी नहीं गयी ,जिससे पूछताछ करनी चाहिए थी नहीं करी , तो क्या पुलिस से बार बार निवेदन करना गलत है ?

6  पिछले ८ महीने में ऐसे कई सबूत मिले जिससे स्पष्ट होता है की ये साजिश करके हत्या की गयी है ,तो क्या मैं वो सब भूल जाऊ,ignore कर दू??

7 आज कुछ लोग कहते है की आप नहीं लड़ पाएंगे ,आप अपना समय और पैसा व्यर्थ कर रहे है।  तो क्या कोई भी आये और मेरे परिवार को मार के चला जाये और मैं बैठा रहू ,कुछ न करू ?


पुलिस का सहयोग तो नहीं मिला लेकिन पिछले १ साल में ऐसे लोग जरूर मिले जो हतोत्साहित करते रहे की कुछ नहीं होगा ,छोड़ दीजिये ,चुप रहिये। कुछ पुलिस वाले ऐसे मिले ,कुछ वकील 

मैं इस रस्ते पर कभी गया तो नहीं ,कभी कोर्ट कचेहरी देखि तो नहीं लेकिन हार नहीं मानूंगा , लडूंगा न्याय के लिए। जितने हमले होने है हो जाये ,मरना है तो मर जायेंगे लेकिन मरने के डर से युद्ध छोड़ दें ऐसा कायर नहीं हूँ मैं। कुछ लोगो ने साथ भी दिया और ऐसे कठिन समय में दिया उसके लिए मैं आभारी हूँ। 

जिन लोगो ने मेरे भाई की हत्या की ,फ्लैट और पैसे के लिए।।। वो लोगो को दंड मिलना चाहिए। 

मित्रो,मुझ पर हमला करके मुझे डराने  का प्रयास जरूर हुआ है लेकिन स्वामी दयानन्द के शिष्य है हम ,वीर राम कृष्ण  के वंशज है डरेंगे नहीं ,घबराऊँगा नहीं, जब तक हूँ लडूंगा न्याय के लिए |

जो सहयोग कर सके या कर रहे है उनका हार्दिक धन्यवाद ,आशा आपका सहयोग बना रहेगा एवं ये न्याय की लड़ाई चलती रहेगी 

इसलिए मैं दुखी तो हूँ लेकिन निराश नहीं हूँ ,भयभीत नहीं हूँ

बाधाएँ आती हैं आएँ

घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,

पावों के नीचे अंगारे,

सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,

निज हाथों में हँसते-हँसते,

आग लगाकर जलना होगा।

क़दम मिलाकर चलना होगा। 

हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,

अगर असंख्यक बलिदानों में,

उद्यानों में, वीरानों में,

अपमानों में, सम्मानों में,

उन्नत मस्तक, उभरा सीना,

पीड़ाओं में पलना होगा।

क़दम मिलाकर चलना होगा।   

- भारत रत्न अटल बिहारी जी द्वारा रचित कविता के अंश 


मित्रो , मैं सुरक्षित हूँ ,सतर्क हूँ और ऐसे हमलो से डरने वाला नहीं हूँ क्योकि मुझे विश्वास है की आप मेरा साथ देंगे ,आप न्याय का साथ अवश्य देंगे 

Friday 25 January 2019

गणतंत्र दिवस

मित्रों ये गणतंत्र है,इसके  आदि प्रणेता मनु है।


ये भारत की शान है,हम सबकी पहचान है।


हम कपिल,कणाद,गौतम की सन्तान है।


हमारे प्रेरक स्वयं राजा भरत है,जिनसे भारत की पहचान है।


ये भूमि बड़ी उर्वरा है दिव्य है,महान है।


क्योंकि हरिश्चंद्र युधिष्ठिर, श्रीराम, श्रीकृष्ण  की पुण्यभूमि


आर्यावर्त महान है।


इसकी रक्षा करने को यदि शीश कटाने पड़ जाए


इसकी रक्षा करने को यदि स्वयं को अर्पण करना पड़ जाए


तो मातृभूमि की रक्षा में तन मन धन न्यौछावर कर देंगे


लेकिन तिरंगे की शान  इसकी आन को धूमिल 


नही होने देंगे चाहे खुद मिट्टी में मिलना पड़े।


आओ चले भगत,बिस्मिल,खुदीराम बोस की राहें


ताकि फिर नेता जी को ना कहना पड़े तुम मुझे खून......


ताकि फिर किसी 'आज़ाद' को आज़ादी के लिए कोड़े ना लगे


ब्रह्मदेव की ओर से गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं


करे स्वीकार, सादर आभार सहित


द्वारा..पं ब्रह्मदेव वेदालंकार


Thursday 24 January 2019

निर्धनता बुरी नही धन का नशा बुरा है

कहा गया है कि धन में लक्ष्मी का वास होता है। धन का महत्व आज के समय में ही नहीं, बल्कि प्राचीन समय से रहा है। धन के बिना न तो कोई यज्ञ होता है न ही कोई अनुष्ठान। जीवन निर्वाह धन के बिना नहीं हो सकता। आपने अक्सर ही लोगों से सुना होगा कि पैसे में बहुत ताकत है और यह कि पैसा है तो सब कुछ है! इन कथनों में कुछ हद तक सच्चाई भी है। यह सही है कि धन के बिना हमारा काम नहीं चल सकता, पर ऐसा कतई नहीं है कि धन ही सब कुछ है। थोड़ा-बहुत धन हमें चाहिए, पर जितना चाहिए उसी के पीछे यह सब अनर्थ नहीं हो रहा। अनर्थ वे लोग ही करते हैं जिनके पास ‘चाहिए’ से अधिक धन है। यहां सवाल यह उठता है कि चाहिए से अधिक धन का लोग क्या करते हैं?

आज धन बल पर धर्म का व्यवसायीकरण हो रहा है। संतगण धन-संचय और वैभवशाली जीवन-शैली के नए प्रतिमान गढ़ रहे हैं। ऐसे में निराकार ईश्वर के आराधक संत कबीरदास याद आते हैं। कबीर ने बड़े सहज भाव से परमेश्वर से यह मांग रखी- ‘साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय॥’ यानी वह जनसाधारण को परिश्रम से उतने ही धन उपार्जन के लिए कह रहे हैं, जितने से उसके दैनिक कार्यों की पूर्ति हो जाए। आवश्यकता से अधिक धन की इच्छा ही तृष्णा का रूप धारण कर लेती है और अंततोगत्वा यह तृष्णा ही व्यक्ति के नैतिक पतन का कारण बनती है।

हमारी संस्कृति में धन के अभाव को बहुत बड़ा अभिशाप माना जाता है। जहां यह सत्य है कि दूसरों की भलाई के कार्यों के लिए धन की आवश्यकता होती है, वहां यह भी सत्य है कि धन की बुराइयों को अपनी ओर खींचने की क्षमता अकथनीय है। इस दुविधा को दूर करने के लिए हमारी संस्कृति ने एक मार्ग सुझाया है और वह है त्याग। अपने शरीर को स्वस्थ रखने व दूसरों की भलाई के लिए धन की सहायता से उचित साधन जुटाए जाएं, लेकिन उनका उपभोग त्याग की भावना से किया जाए।

यह सच है कि धन मूल्यवान है। उसकी सभी को जरूरत है, पर उसको सब कुछ मान लेना स्वस्थ मन-मस्तिष्क का परिचायक नहीं कहा जा सकता। इसी मान्यता के प्रभाव का परिणाम है कि आज जीवन के लिए धन नहीं रह गया है, धन के लिए जीवन हो गया है। हर आदमी भाईचारा, सुख-शांति व ईमान खोकर जिस किसी भी तरह से धन कमाने के पीछे पड़ा है। इससे दुनिया में धन नहीं बढ़ा है बल्कि धन का नशा बढ़ा है, धन के लिए पागलपन बढ़ा है। इससे दुख बढ़ा है, अशांति बढ़ी है, घमंड बढ़ा है और शैतानियत बढ़ी है।

वेद कहता है- पैसा कमाओ परंतु बहुत नहीं, जितनी जरूरत है उतना कमाओ। कुछ दान भी दो कुछ खाओ-पियो और ईश्वर का ध्यान, भगवान का भजन करो। धन कमाने के लिए एक दिन में अधिकतम 8 घंटे का समय खर्च करना चाहिए, थोड़ा-थोड़ा करके धीरे-धीरे पैसा कमाओ, धीरे-धीरे जमा करो जिससे अपना जीवन ठीक से चलता रहे। अत्यधिक धन की चाह को अपने दिल में कभी जड़ मत पकड़ने दो। याद रखिए कि आपके दोस्त, परिवार के सदस्य और आपकी सेहत पैसे से कहीं ज्यादा अनमोल हैं।
निर्धनता बुरी है पर धन का नशा उससे भी बुरा है।

Wednesday 16 January 2019

मकर संक्रांति

नमस्ते जी।इस मकर संक्रांति मैंने यह कुछ प्रभु को समर्पित करते हुए कविता लिखी है।आप भी आनंद लेऔर अपना स्नेह प्रदान करे।
हे मेरे वरेण्यम प्रभु वरदान दो,
सूर्य के पथ पर चलू निरन्तर,
ज्ञान दो सद्ज्ञान दो मेरे प्रभु
जीवन में दक्षिणायण ना आये कभी
उत्तरायण में बीते जीवन की घड़िया।
उत्तरायण के मार्ग पर चलता हुआ
सत्य की जय करता हुआ सदा,
क्योंकि सत्य भी आप ही है
और नारायण भी आप ही है।
आपका अटल पथ उत्तरायण है।
उत्तरायण के पथ पर चलता हुआ
विचलित ना हूँ कभी दक्षिणायन की बाधाओं से।
जीवन का अज्ञान तिमिर भस्म हो आपके प्रकाश से।
आपके दिखाये पथ पर चलकर
जीवन के संग्राम में बड़ो के बताए
मार्ग का आरोहण कर के
देवत्व का वरण करु
मैं ब्रह्म हूँ विजयी रहूँ, देवत्व के मार्ग में।
विजयी रहूँ, विजयी रहूँ देवत्व के मार्ग में।
द्वारा    पं ब्रह्मदेव वेदालंकार

Monday 29 October 2018

आज का विचार

*एक राजा को दयालु और दानवीर कहलाने का बड़ा शौक था। दूसरों के मुख से आत्म प्रशंसा* *सुनने की उसकी ललक दिन–प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। वह प्रतिदिन यश और प्रशंसा बटोरने* *के लिए कोई न कोई अनोखा कार्य करता था।*

*एक दिन राजा नगर की सैर को जा रहा था, तभी वहाँ से एक बहेलिया बंद पिंजरे में पक्षियों* *को लेकर जा रहा था। राजा ने उस बहेलिये को बुलाया और सभी पक्षियों का मूल्य पूछा।* *बहेलिये ने मूल्य बताया तो राजा ने सब पक्षियों को खरीद लिया और स्वतन्त्र कर दिया।*

*जिसने भी यह दृश्य देखा उसने राजा की बड़ी सराहना की। इससे राजा बहुत खुश हुआ। अब* *वह बहेलिया प्रतिदिन उसी समय वहाँ से गुजरने लगा, जब राजा नगर की सैर करने जाता* *था। प्रशंसा का गुलाम राजा भी प्रतिदिन उसी बहेलिये से पक्षी खरीद कर उड़ा देता।*

*राजा के दयालुता के इस प्रदर्शन ने उस राज्य में कई नये बहेलियों को जन्म दे दिया।* *आत्मप्रशंसा और यश कामना के आनंद में डूबा राजा अपनी मुर्खता को समझ नहीं पाया।*

*इसी बीच एक महात्मा का उस राज्य में आगमन हुआ। जब उनके सामने राजा यह मुर्खता* *किया तो वह बहुत दुखी हुए। महात्मा ने राजा को समझाया–“ हे राजन ! आपको मालूम भी* *है, आपकी झूठी यश कामना इन निरीह पक्षियों को कितनी महँगी पड़ती है। बहेलियों पर* *आपके मनमाने धन लुटाने के कारण कई नये बहेलिये पैदा हो गये। ये लालची बहेलिये* *प्रातःकाल आपके सामने प्रस्तुत करने के चक्कर में पता नहीं, दिनभर कितने पक्षियों को* *परेशान करते होंगे। उनमें से कई निर्दोष पक्षी तो मर भी जाते होंगे। यदि आप इतने ही* *दयावान और धर्म परायण है तो दयालुता का प्रदर्शन बंद कीजिये और पक्षियों के शिकार पर* *प्रतिबंध लगा दीजिये।”*

*राजा को महात्मा की बात समझ आ गई। उसने अपनी भूल के लिए महात्मा के सामने* *पश्चाताप व्यक्त किया और यश कामना की आकांक्षा छोड़कर वास्तविक दया धर्म के पालन* *की रीति नीति अपनाई। दुसरे ही दिन राजा ने सभी बहेलियों को कारावास में डाल दिया और* *पुरे राज्य में पक्षियों के वध पर सख्त नियम ऐलान करवा दिया।*
शिक्षाप्रद्ध कथासार:
*इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि हमें दयालुता का प्रदर्शन नहीं, पालन करना चाहिए।* *वास्तव में प्रदर्शन यश की कामना से किया जाता है जबकि पालन आत्म प्रेरणा से किया* *जाता है।*